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जय जय गणराया

जय जय गणराया
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श्री सच्चित् आनंदा जय जय गणराया।
नेईं परम पदातें तव भक्तां सदया।।ध्रु.।।
अपार महिमा तूझा न कळे कवणांसी।
धर्मविचारी थकले गम्य न परि त्यांसी।
तीर्थाटन जन करिती रामेश्वर काशी।
परि नच शांती लाभे चंचल चित्तासी।।1।।

जगत्स्वरूपा तुजला स्थापूं मी कोठें।
आवाहन करूं कैसें सन्मंडपिं थाटें।
तव महिमा आठविता तर्कोदधि आटे।
पाहुनि अद्भुत शक्ती आदर बहु वाटे।।2।।

गंधाक्षतसुमदूर्वा तय योग्य न मिळती।
तव निज महिमा सूचक मंत्र न मज येती।
अर्ध्यस्त्रानविलेपन करुं केंवी रीति।
नकळे, येउनि राहो हृन्मंदिरिं मूर्ति।।3।।

काया वाचा मनही तव सेवे लागो।
जो तूं सत्पथ दाविसि त्या मार्गें वागो।
तव गुणचिंतनिं मन्मन आनंदें जागो।
'सज्जन संगति देई' वर निशिदिनिं मागो।।4।।

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