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मुंज मंगलाष्टके

मुंज मंगलाष्टके
, बुधवार, 8 जानेवारी 2025 (17:54 IST)
आधीं घ्यावे पार्वती कुमराला ॥ 
विद्या देतो जो स्मरे त्या नराला ॥ 
देवाचें जो विघ्न तोही निवारी ॥ 
पायादेवो वामनो ब्रह्मचारी ॥ 
बटो सुमुहूर्त सावधान ॥ १ ॥
 
वंदु या गणनायकास अजि,
त्या जो बुध्दिचा अधिपती।
ऐविद्या लाभ झणी जयास स्मरता,
होई असा गणपती।
येवोनी शुभ मंडपात बटुला,
देवोत शुभ आशिष।
 
हेची प्रार्थू पदास वंदुनी तया कुर्यात बटो मंगलम्।।
सत्याने वदणे कधी न चुकणे, कर्तव्य सांभाळणे।
व्यायामा करणे तनु कमविणे, विद्यार्जना जोडणे।
मात-पितृपदी विनम्र असणे, आज्ञा सदा पाळणे।
सेवा भाव सदैव ध्यानि धरणे कुर्यात् बटो मंगलम्।।
गेले शैशव बाल्यकालही आता संपून गेला असे।
आता छात्र दशा सुयोग्य वय हे विद्यार्जनाचे असे।
विद्या ज्ञान मला सुखे मिळवून, व्हावे सुखी जीवनी।
बाळा आशिष हा रे तुज दिला कुर्यात् बटो मंगलम्।।
 
आकांक्षा मनी थोर ठेवुनि तुला, बांधोन मुंडावळी।
सौवर्णी तशी मौक्त्किके चमकती, तीही पहा आणिली
मौजीबंधन साज तो चढविला, वैशिष्ट्य हे त्यातले।
आहे ज्ञानही कष्टसाध्य म्हणूनी, हे सर्व तू घातले।।
 
सन्नारी नटल्या, मुली विनटल्या, होती मने मोदित।
सानापासुनी थोर आप्तजन हे झाले सुसंमीलित।
माला, मंगलतोरणे विलसती आनंद कोंदाटला।
मौजीबंधन साधण्यास बटु तो मार्गही दाटला।
 
बाळा शैशव संपेल, तव आता विद्यार्जनाची दिशा।
आला, भाग्य तुझे समीप तुजला आदर्शही थोरसा।
गुर्वाज्ञा शिरसा धरी, तनुमनी राही सदा निर्मल।
वाढो सत्त्वगुणे, प्रफुल्ल सुमने सद्धर्तनाचे बल।।
 
वत्सा, बाल्य तुझे अजुनि वदनी रेंगाळते मोहूनी।
सारी कोमलता मुळी न हलता राही तुला वेधुनी।
आहे प्राप्त सदा नरास करणे, तो आद्य विद्यार्थ की।
नाना कष्टही सोशिले गुरुघरी श्रीरामकृष्णादिकी।।
 
सत्याने चले धर्मही करि दसा स्वाध्याय सोडू नको।
तू मातापितरांसी वंदन करी कोणास निंदू नको।
आचार्यांस सदा नमून मिळवी विद्याही लाभप्रद।
आता तू व्रत आचरी दृढपणे कुर्यात् बटो मंगलम्।।
 
मातेचे घर सोडूनी गुरुकुळी आता पुढरे राहणे।
विद्याभ्यास करी यथार्थ जगती सामर्थ्य संपादणे।
आज्ञापालनही सुबुध्दि धरुनी सर्वंकष उन्नती।
साधावी, उपदेश हा करितसे कुर्यात् बटो मंगलम्।।
 
पहा हो हा बटु शोभतो साना।
वाळेनुपुरे दिसे गोजिरवाणा।
ऐसा त्याते क्रीडविती कुमारी।
पाया देवो वामनो ब्रम्हचारी।।
अनुपम्य बटो सुवदन साजे।
नानापरी बहुवाद्ये वाजे।
ऐसा त्याते क्रीडविती कुमारी।
पाया देवो वामनो ब्रम्हचारी।।
 
पायीं वाळे पैंजणालागिं शोभा ॥ 
गोपीमध्ये ठेंगणा कृष्ण ऊभा ॥ 
ऐसा त्यातें क्रीडविती कुमारी ॥ 
पायादेवो वामनो ब्रह्मचारी ॥
 
अनुपम्य बटोचे सुवदन साजे ॥ 
नानापरीचें बहु वाद्य वाजे ॥ 
ऐसा त्यातें क्रीडवीती कुमारी ॥ 
पायादेवो वामनो ब्रह्मचारी ॥
 
नानापरी मिळाली कुमरे बाळा।
नाना छंदे क्रीडती खेळाखेळां।
ऐसा त्याते क्रीडविती कुमारी।
पाया देवो वामनो ब्रम्हचारी।।
 
माघापासुनी पांच बरवे ती शुक्लपक्षी तिथी।
द्वितीय पंचमी षष्ठिका दशमी हे एकादशी द्वादशी।
ऐसा मास तिथी मिळूनी बटुशी।
कुर्यात् बटो मंगलम्।
 
रात्री ते प्रहराहुनि अधिक जी ऐसी तृतीया बरी।
षष्ठी यामदिनाहुनी जरी तरी रात्री शुभा ते करी।
तैशी द्वादशी अर्धरात्र उपरी वेष्टोनि राहे स्वरी।
ऐशा तिथी त्या प्रदोष चुकल्या कुर्यात् बटो मंगलम्
 
स्वऋक्षश्वां सुसौम्या श्रुतिपतिरपिचेत्केंद्रे कोणे।
स्थित: स्यु:।
वर्णिवेदा यवत्ता पशुपति मृह धनवाद: मन्द:।
अन्त्ये शिव कुर्यात् बटो मंगलम्।
 
श्रीमत्तातपदारविंद विपुले ध्यानस्तवारोधरा।
सक्त: स्वादत्त पुण्डरीकवरदो राजाधिराजोहर:।
या श्रीश्चंदजन चर्चितोभुतमुखो भीमातटे राधिके।
गोपीनंदन वंदिता दशशिरो कुर्यात् बटो मंगलम्।।
 
तदेव लग्नं सुदिनं तदेव।
ताराबलं चंद्रबलं तदेव।
विद्याबलं दैवबलं तदेव।
लक्ष्मीपते तेंsघ्रियुगं स्मरामि।।
 
अथ उपनयनललितम् 
अजिनं दंडकमंडलु मेखलारुचिरपावनवामन मूर्तये ॥ मितजगत्रितयाय जितारये निगमवाक्पटवे वटवे नमः ॥१॥
ईश्वरो वननिवासतत्परः पार्वती गिरिसुतो विदधानः ॥ संसृतौ भवति विघ्नविनाशो ब्रह्मचारिबटवेवरदः स्यात् ॥ २॥
भोगिभूषितविभूषितगात्रो हस्तकल्पित सुमोदकपात्रः विघ्ननाशकरः शिवपुत्रो ब्रह्मचारिबटवे. वरदः स्यात् ॥३॥
मौजी च दंडं यज्ञोपवीतं कमंडलु सत्तिलकोपधारी ॥ स्याब्रह्मचारी शिखिवाहनोऽपिश्रियं कुमाराय शुभं ददातु ॥४॥
एक एव जगतामधुनेशः सायुधो वरकरो गणराजः॥ हस्तिराजवदनाभिराजितो ब्रह्मचारि बटवे वरदः स्यात् ॥५॥
वानरो वनचरोपि वानरो राघवस्य करुणार्पितचित्तः ॥ अंजनीजठरसंभववालो ब्रह्मचारि बटवे वरदः स्यात् ॥ ६॥
विघ्नपुंजदहनो गणपालो ह्यर्धचंद्रतिलकांकितभालः॥ पादमर्दितनिजाश्रितकालो ब्रह्मचारि बटवे वरदः स्यात् ॥ ७ ॥
अभ्रश्यामः शुभ्रयज्ञोपवीतः सत्कोपीनः पीतकृष्णाजितश्रीः ॥ छत्री दंडी पुंडरीकाय ताक्षः पायादेवो वामनो ब्रह्मचारी ॥ ८॥
रेणुकाशतहुताशनधामजामदग्न्य कुलभूषणरामः ॥ क्षत्रियांतकरणोत्तमणों ब्रह्मचारिबटवे वरदः स्यात् ॥९॥
तदेव लमं सुदिनं तदेव ॥ विद्याबलं० ॥१०॥
 
बटुतें गणनाथचिंतन करविजे सुमुहूर्त सावधान ॥ ब्रह्मसावित्रिचिंतन करविजे सुमुहूर्त सावधान ॥ इष्टदेवता कुलदेवता ग्रामदेवता चिंतन सुमु० सावधान ॥ उमामहेश्वर चिंतन सुमुहूर्त सावधान ॥ अंतःपट दृढ आसिजे सुमुहूर्त ॥ जयघंटाशब्दप्रमाण सुमु० अत्यासंधि सावधान ॥ अति सुलभ सावधान ॥ अतिसुमुहर्त सावधान ॥ अति समीप सावधान ॥ सावधान ॥ सावधान सावधान ॥ इति उपनयनललितं ॥
 

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