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अवतार गोकुळी हो। जन तारावयासी

अवतार गोकुळी हो। जन तारावयासी
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अवतार गोकुळी हो। जन तारावयासी।
लावण्यरुपडे हो। तेज:पुंजाळ राशी।
उगवले कोटिबिंब। रवि लोपला शशी।
उत्साह सुरवरां। महाथोर मानसी।।1।।

जय देवा कृष्णनाथा। राईरखुमाई कांता।
आरती ओवाळीन। तुम्हा देवकीसुता ।।धृ।।

कौतुक पहावया। भाव ब्रह्मयाने केली।
वत्सेही चोरूनिया। सत्यलोकासी नेलीं।
गोपाल गाईवत्सें। दोन्ही ठाई रक्षिली।
सुखाचा प्रेमसिंधु। अनाथांची माऊली।।2।।

चोरितां गोधनें हो। इन्द्र कोपला भारी।
मेघ कडाडिला। शिला वर्षलल्या धारी।
रक्षिले गोकुळ हो। नखीं धरिला गिरी।
निर्भय लोकपाळ। अवतरला हरी।।3।।

वसुदेव देवकीचे। बंद फोडिली शाळ।
होऊनिया विश्वजनिता। तया पो‍‍टिंचा बाल।
दैत्य हे त्रासियेले। समुळ कंसासी काळ।
राज्य हें उग्रसेना। केला मथुरापाळ।।4।।

तारिले भक्तजन। दैत्य सर्व निर्दाळून।
पांडवा साहाकारी। अडलिया निर्वाणी।
गुण मी काय वर्णु। मति केवढी वानूं।
विनवितो दास तुका। ठाव मागे चरणी।।5।।

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