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संपूर्ण श्री भक्तविजय अध्याय (१ ते ५७)

संपूर्ण श्री भक्तविजय अध्याय (१ ते ५७)
, मंगळवार, 9 जानेवारी 2024 (16:54 IST)
संतकवी महीपतीबोवा ताहराबादकर विरचित
मंगलाचरणम् 
स जयति सिन्धुरवदनो देवो यत्पादपङ्कजस्मरणम् ॥ वासरमणिरिव तमसां राशिं नाशयति विघ्नानाम् ॥१॥
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ॥ या ब्रह्माच्युतशंकर प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥२॥
मूकं करोति वाचालं पंगुं लंधयते गिरिम् ॥ यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम् ॥३॥
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् ॥ देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॥४॥
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् ॥ देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥५॥
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ॥ गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥६॥ 

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आरती श्रीविठ्ठलाची
युगें अठ्ठावीस विठेवरी उभा ॥ वामांगीं रखुमाई दिसे दिव्य शोभा ॥ पुंडलिकाचे भेटी परब्रह्म आलें गा ॥ चरणीं वाहे भीमा उद्धरी जगा ॥१॥ जय देव जय देव जय पांडुरंगा ॥ रखुमाईवल्लभा राईच्या वल्लभा पावें जिवलगा ॥धृ०॥ तुळसीमाळा गळां कर ठेवुनी कटीं ॥ कांसे पीतांबर कस्तुरी लल्लाटीं ॥ देव सुरवर नित्य येती भेटी ॥ गरुड हनूमंत पुढें उभे रहाती ॥जय०॥२॥ धन्य वेणूनाद अनुक्षेत्रपाळा ॥ सुवर्णाचीं कमळें वनमाळा गळां ॥ राई रखुमाबाई राणीया सकळा ॥ ओंवाळीती राजा विठोबा सांवळा ॥ज०॥३॥
ओंवाळूं आरत्या कुर्वंड्या येती ॥ चंद्रभागेमाजी सोडुनियां देती ॥ दिंड्या पताका वैष्णव नाचती ॥ पंढरीचा महिमा वर्णावा किती ॥जय०॥४॥ आषाढी कार्तिकी भक्तजन येती ॥ चंद्रभागेमाजी स्नानें जे करिती ॥ दर्शन हेळामात्रें तयां होय मुक्ती ॥ केशवासी नामदेव भावें ओंवाळिती ॥ जयदेव०॥५॥
 

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