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श्री रघुवीर गद्यं

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शुक्रवार, 12 एप्रिल 2024 (05:01 IST)
जयत्याश्रित संत्रास ध्वान्त विध्वंसनोदयः । प्रभावान् सीतया देव्या परम- व्योम भास्करः ॥
 
जय जय महावीर !
महाधीर धौरेय !
देवासुर समर समय समुदित निखिल निर्जर निर्धारित  निरवधिकमाहात्म्य !
दशवदन दमित दैवत परिषदभ्यर्थित दाशरथि- भाव ! रणाध्वर धुर्य भव्य दिव्यास्त्र बृन्द वन्दित ! प्रणत जन विमत विमथन दुर्ललितदोर्ललित !
तनुतर विशिख विताडन विघटित विशरारु शरारु ताटका ताटकेय !
जड- किरण शकल- धरजटिल नट पति- मकुट नटन- पटु विबुध- सरिद्- अति- बहुल मधु- गलन ललित- पद नलिन- रज- उप- मृदित निज- वृजिन जहदुपल- तनु- रुचिर
परम- मुनि वर- युवति नुत ! कुशिक- सुतकथित विदित नव विविध कथ ! मैथिल नगर सुलोचना लोचन चकोर चन्द्र !
खण्ड- परशु कोदण्ड प्रकाण्ड खण्डन शौण्ड भुज- दण्ड !
चण्ड- कर किरण- मण्डल बोधित पुण्डरीक वन रुचि लुण्टाक लोचन !
मोचित जनक हृदय शङ्कातङ्क !
परिहृत निखिल नरपति वरण जनक- दुहित कुच- तट विहरण
समुचित करतल !
शतकोटि शतगुण कठिन परशु धर मुनिवर कर धृत
दुरवनम- तम- निज धनुराकर्षण प्रकाशित पारमेष्ठ्य !
क्रतु- हर शिखरि कन्तुक विहृतिमुख जगदरुन्तुद
जितहरिदन्त- दन्तुरोदन्त दश- वदन दमन कुशल दश- शत- भुज
नृपति- कुल- रुधिरझर भरित पृथुतर तटाक तर्पित
पितृक भृगु- पति सुगति- विहति कर नत परुडिषु परिघ !
अनृत भय मुषित हृदय पितृ वचन पालन प्रतिज्ञावज्ञात
यौवराज्य !
निषाद राज सौहृद सूचित सौशील्य सागर !
भरद्वाज शासनपरिगृहीत विचित्र चित्रकूट गिरि कटक
तट रम्यावसथ !
अनन्य शासनीय !
प्रणत भरत मकुटतट सुघटित पादुकाग्र्याभिषेक निर्वर्तित
सर्वलोक योगक्षेम !
पिशित रुचि विहित दुरित वल- मथन तनय बलिभुगनु- गति सरभसशयन तृण
शकल परिपतन भय चरित सकल सुरमुनि- वर- बहुमत महास्त्र सामर्थ्य !
द्रुहिण हर वल- मथन दुरालक्ष्य शर लक्ष्य !
दण्डका तपोवन जङ्गम पारिजात !
विराध हरिण शार्दूल !
विलुलित बहुफल मख कलम रजनि- चर मृग मृगयानम्भ
संभृतचीरभृदनुरोध !
त्रिशिरः शिरस्त्रितय तिमिर निरास वासर- कर !
दूषण जलनिधि शोशाण तोषित ऋषि- गण घोषित विजय घोषण !
खरतर खर तरु खण्डन चण्ड पवन !
द्विसप्त रक्षः- सहस्र नल- वन विलोलन महा- कलभ !
असहाय शूर !
अनपाय साहस !
महित महा- मृथ दर्शन मुदित मैथिली दृढ- तर परिरम्भण
विभवविरोपित विकट वीरव्रण !
मारीच माया मृग चर्म परिकर्मित निर्भर दर्भास्तरण !
विक्रम यशो लाभ विक्रीत जीवित गृघ्र- राजदेह दिधक्षा
लक्षित- भक्त- जन दाक्षिण्य !
कल्पित विबुध- भाव कबन्धाभिनन्दित !
अवन्ध्य महिम मुनिजन भजन मुषित हृदय कलुष शबरी
मोक्षसाक्षिभूत !
प्रभञ्जन- तनय भावुक भाषित रञ्जित हृदय !
तरणि- सुत शरणागतिपरतन्त्रीकृत स्वातन्त्र्य !
दृढ घटित कैलास कोटि विकट दुन्दुभि कङ्काल कूट दूर विक्षेप
दक्ष- दक्षिणेतर पादाङ्गुष्ठ दर चलन विश्वस्त सुहृदाशय !
अतिपृथुल बहु विटपि गिरि धरणि विवर युगपदुदय विवृत चित्रपुङ्ग वैचित्र्य !
विपुल भुज शैल मूल निबिड निपीडित रावण रणरणक जनक चतुरुदधि
विहरण चतुर कपि- कुल पति हृदय विशाल शिलातल- दारण दारुण शिलीमुख !
अपार पारावार परिखा परिवृत परपुर परिसृत दव दहन
जवन- पवन- भव कपिवर परिष्वङ्ग भावित सर्वस्व दान !
अहित सहोदर रक्षः परिग्रह विसंवादिविविध सचिव विप्रलम्भ समय
संरम्भ समुज्जृम्भित सर्वेश्वर भाव !
सकृत्प्रपन्न जन संरक्षण दीक्षित !
वीर !
सत्यव्रत !
प्रतिशयन भूमिका भूषित पयोधि पुलिन !
प्रलय शिखि परुष विशिख शिखा शोषिताकूपार वारि पूर !
प्रबल रिपु कलह कुतुक चटुल कपि- कुल कर- तलतुलित हृत गिरिनिकर साधित
सेतु- पध सीमा सीमन्तित समुद्र !
द्रुत गति तरु मृग वरूथिनी निरुद्ध लङ्कावरोध वेपथु लास्य लीलोपदेश
देशिक धनुर्ज्याघोष !
गगन- चर कनक- गिरि गरिम- धर निगम- मय निज- गरुड गरुदनिल लव गलित
विष- वदन शर कदन !
अकृत चर वनचर रण करण वैलक्ष्य कूणिताक्ष बहुविध रक्षो
बलाध्यक्ष वक्षः कवाट पाटन पटिम साटोप कोपावलेप !
कटुरटद् अटनि टङ्कृति चटुल कठोर कार्मुक !
विशङ्कट विशिख विताडन विघटित मकुट विह्वल विश्रवस्तनयविश्रम
समय विश्राणन विख्यात विक्रम !
कुम्भकर्ण कुल गिरि विदलन दम्भोलि भूत निःशङ्क कङ्कपत्र !
अभिचरण हुतवह परिचरण विघटन सरभस परिपतद् अपरिमितकपिबल
जलधिलहरि कलकल- रव कुपित मघव- जिदभिहनन- कृदनुज साक्षिक
राक्षस द्वन्द्व- युद्ध !
अप्रतिद्वन्द्व पौरुष !
त्र यम्बक समधिक घोरास्त्राडम्बर !
सारथि हृत रथ सत्रप शात्रव सत्यापित प्रताप !
शितशरकृतलवनदशमुख मुख दशक निपतन पुनरुदय दरगलित जनित
दर तरल हरि- हय नयन नलिन- वन रुचि- खचित निपतित सुर- तरु कुसुम वितति
सुरभित रथ पथ !
अखिल जगदधिक भुज बल वर बल दश- लपन लपन दशक लवन- जनित कदन
परवश रजनि- चर युवति विलपन वचन समविषय निगम शिखर निकर
मुखर मुख मुनि- वर परिपणित!
अभिगत शतमख हुतवह पितृपति निरृति वरुण पवन धनदगिरिशप्रमुख
सुरपति नुति मुदित !
अमित मति विधि विदित कथित निज विभव जलधि पृषत लव !
विगत भय विबुध विबोधित वीर शयन शायित वानर पृतनौघ !
स्व समय विघटित सुघटित सहृदय सहधर्मचारिणीक !
विभीषण वशंवदी- कृत लङ्कैश्वर्य !
निष्पन्न कृत्य !
ख पुष्पित रिपु पक्ष !
पुष्पक रभस गति गोष्पदी- कृत गगनार्णव !
प्रतिज्ञार्णव तरण कृत क्षण भरत मनोरथ संहित सिंहासनाधिरूढ !
स्वामिन् !
राघव सिंह !
हाटक गिरि कटक लडह पाद पीठ निकट तट परिलुठित निखिलनृपति किरीट
कोटि विविध मणि गण किरण निकर नीराजितचरण राजीव !
दिव्य भौमायोध्याधिदैवत !
पितृ वध कुपित परशु- धर मुनि विहित नृप हनन कदन पूर्वकालप्रभव
शत गुण प्रतिष्ठापित धार्मिक राज वंश !
शुच चरित रत भरत खर्वित गर्व गन्धर्व यूथ गीत विजय गाथाशत !
शासित मधु- सुत शत्रुघ्न सेवित !
कुश लव परिगृहीत कुल गाथा विशेष !
विधि वश परिणमदमर भणिति कविवर रचित निज चरितनिबन्धन निशमन
निर्वृत !
सर्व जन सम्मानित !
पुनरुपस्थापित विमान वर विश्राणन प्रीणित वैश्रवण विश्रावित यशः
प्रपञ्च !
पञ्चतापन्न मुनिकुमार सञ्जीवनामृत !
त्रेतायुग प्रवर्तित कार्तयुग वृत्तान्त !
अविकल बहुसुवर्ण हय- मख सहस्र निर्वहण निर्व र्तित
निजवर्णाश्रम धर्म !
सर्व कर्म समाराध्य !
सनातन धर्म !
साकेत जनपद जनि धनिक जङ्गम तदितर जन्तु जात दिव्य गति दान दर्शित नित्य
निस्सीम वैभव !
भव तपन तापित भक्तजन भद्राराम !
श्री रामभद्र !
नमस्ते पुनस्ते नमः ॥
 
चतुर्मुखेश्वरमुखैः पुत्र पौत्रादि शालिने ।
नमः सीता समेताय रामाय गृहमेधिने ॥
 
कविकथक सिंहकथितं
कठोत सुकुमार गुम्भ गम्भीरम् ।
भव भय भेषजमेतत्
पठत महावीर वैभवं सुधियः ॥
 
सर्वं श्री कृष्णार्पणमस्तु

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